How are the houses of eastern kshatriya (purbiya Rajputs) made

भारतीय युद्ध परंपरा में चार तरह के किलों का वरणन है ।  गिरि  दुर्ग (पहाड़ी किला ) ,वन दुर्ग( पेड़ पौधों से बनाये गए किले ), जल दुर्ग (तालाब से बनाये गए किले ) और नर दुर्ग (सैनिकों की सहायता से किसी भूमि की रक्षा करना )| हालांकि इन सभी किलों में पहाड़ी किलों को सबसे उत्तम माना गया है लेकिन मैदानी इलाकों में  केवल वनदुर्ग या जल दुर्ग ही श्रेष्ठ माने जाते थे |18 वीं शताब्दी के अंत तक  अवध के विशाल मैदान में देशी कंटीले बांसों का उपयोग वन दुर्ग बनाने में किया जाता था जिसे बांस की कोट अथवा बँसवार कोट(kot ) कहते थे कोट एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है किला | वास्तव में मैदानी क्षेत्रों में बनाये जाने वाले इस प्रकार के किले  जल दुर्ग और वन दुर्ग का मिश्रित रूप थे | इन किलों को बनाने के लिए केंद्रीय  भूमि के चारों ओर गहरी खांई खोद दी जाती थी और निकाली हुयी मिट्टी  से केंद्रीय भूमि को पाट  कर ऊंचा कर दिया जाता था , इसके बाद केंद्रीय भूमि के किनारे- किनारे कंटीले बांस की झाड़ियाँ लगा दी जातीं थी | बांस प्रकृति  का एक अनूठा उपहार है, बांस को carbondioxide सोखने वाला स्टील कहा जा सकता है क्योंकि यह स्टील से 3 गुना ज्यादा मजबूत होता है और भारी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड को सोख सकता है, भीषण अकाल पड़ने पर भी बांस जल्दी नहीं सूखता , बांस की नयी कोपलों का उपयोग सब्जियां बनाने में भी किया जाता है जो की पोषण से भरपूर होती हैं| बांस की हरी ऊँची झाड़ियों पर तोप के गोले का कोई असर नहीं होता है , और चारों ओर की खांई के कारण बांस को काटना भी बड़ा कठिन था| इस प्रकार यह किला अभेद्य होता था लेकिन इस प्रकार के किले defensive टाइप के होते थे offensive actions में ये कम सफल होते थे | लेकिन फिर भी अवध के बड़े जमींदार और तालुकेदार सैकड़ों सालों तक अपने घर ऐसे किलों के अंदर ही बनाते रहे और इन किलों ने भी शत्रुओं से इनकी रक्षा की                                                                                                                                                                                                                                              
   

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